गजल
सपना ठुलाे थियाे अचेल सानाे भैदियाे !
समय खुकुरी, जिन्दगी अचानाे भैदियाे !
जब सुर्य लुक्याे पर क्षितिजकाे पाेल्टामा,
बाँकि मात्र शरीर, छायाँ बिरानाे भैदियाे !
दिलबाट निष्कासीत त्याे प्रेमीकाे अचेल,
घर धर्ती भैदियाे, आकाश छानाे भैदियाे !
खै कसरी, दैवकाे परीक्षा चलिरहदा,
पराई आफ्नाे, नजिककाे फलानाे भैदियाे !
याे खप्परलाई पिडाले यसरी च्याप्याे कि,
मन कडा पथ्थर ,आखाँ ओभानाे भैदियाे !
सन्देश घिमिरे
कावासोती, नवलपुर
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